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दोस्तों पिछले दो भारतीय आयुर्वेद के अनुसार मिर्गी रोग का उपचार (इलाज) प्राचीन समय से ही गहन और समग्र दृष्टिकोण के रूप में किया जाता रहा है। आयुर्वेद, जो कि एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है, शरीर, मन और आत्मा के समग्र स्वास्थ्य पर ध्यान देती है। मिर्गी, या जिसे "अपस्मार" भी कहा जाता है, एक न्यूरोलॉजिकल विकार है जो "वात दोष" की विकृति के कारण होता है। यहां पर हम आयुर्वेद के संदर्भ में मिर्गी के कारण, लक्षण और उपचार के विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे।
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आयुर्वेद के अनुसार उपचार (Treatment):-
आयुर्वेद मिर्गी का उपचार करते समय तन, मन और आत्मा के समग्र स्वास्थ्य को सुधारने पर ध्यान देती है। नीचे कुछ प्रमुख आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियां दी गई हैं:-
1 पंचकर्म थैरेपी:-
1. वमन (Vamana - चिकित्सकीय वमन या उल्टी):-
वमन के माध्यम से शरीर से दोषों (विशेष रूप से कफ दोष) को बाहर निकाला जाता है।
मिर्गी में लाभ:
- मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को साफ करता है।
- मानसिक तनाव और मस्तिष्क पर बढ़े हुए कफ दोष को कम करता है।
प्रक्रिया:
- रोगी को वमन के लिए तैयार करने हेतु विशेष आहार और औषधियों का सेवन कराया जाता है।
- इसके बाद जड़ी-बूटियों से युक्त औषधियों द्वारा वमन की प्रक्रिया कराई जाती है।
- मिर्गी में इससे मानसिक और शारीरिक हल्कापन महसूस होता है।
2. विरेचन (Virechana - चिकित्सकीय पर्जन):
उद्देश्य: विरेचन के माध्यम से शरीर से पित्त और वात दोष को बाहर निकाला जाता है।
मिर्गी में लाभ:
- मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर अतिरिक्त गर्मी और असंतुलन को नियंत्रित करता है।
- शरीर को शांत और ठंडा करता है।
प्रक्रिया:
- रोगी को विरेचन के लिए घृत (मेडिकेटेड घी) या त्रिफला जैसे औषधीय पदार्थ दिए जाते हैं।
इसके बाद औषधीय रूप से पाचन क्रिया को सक्रिय कर मलत्याग के माध्यम से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है।
3. बस्ति (Basti - चिकित्सकीय एनीमा):
उद्देश्य: वात दोष को संतुलित करने के लिए यह प्रक्रिया की जाती है।
मिर्गी में लाभ:
- वात दोष, जो मिर्गी का मुख्य कारण होता है, इसे संतुलित करता है।
- मस्तिष्क को पोषण देता है और तंत्रिका तंत्र को स्थिर करता है।
प्रक्रिया:
- औषधीय तैल (जैसे दशमूल बस्ति या नारायण तैल) का प्रयोग किया जाता है।
- इसे गुदा मार्ग से शरीर में प्रवेश कराया जाता है।
- बस्ति प्रक्रिया शरीर से गहराई में स्थित दोषों को निकालती है और मस्तिष्क को स्थिरता प्रदान करती है।
4. नस्य (Nasya - नासिका चिकित्सा):
उद्देश्य: नाक के माध्यम से औषधियों को शरीर में प्रवेश कराया जाता है।
मिर्गी में लाभ:
- मस्तिष्क की नसों को साफ करता है और उन्हें पोषण प्रदान करता है।
- दौरे की आवृत्ति को कम करता है और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
- रोगी के नथुनों में जड़ी-बूटियों से युक्त तैल (जैसे ब्राह्मी तैल या शंखपुष्पी तैल) डाला जाता है।
- यह प्रक्रिया तंत्रिका तंत्र को सीधे प्रभावित करती है और मस्तिष्क को शांत करती है।
5. शिरोधारा (Shirodhara - तेल का निरंतर प्रवाह):
उद्देश्य: मस्तिष्क को गहराई से आराम देना और तंत्रिका तंत्र को स्थिर करना।
मिर्गी में लाभ:
- मानसिक तनाव और चिंता को कम करता है।
- मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को संतुलित करता है।
प्रक्रिया:
- रोगी के माथे पर ब्राह्मी तेल, अश्वगंधा तेल या नारायण तेल जैसे औषधीय तैल का लगातार प्रवाह किया जाता है।
- यह प्रक्रिया मस्तिष्क की नसों को गहराई से आराम देती है।
पंचकर्म के लिए पूर्व-प्रक्रिया (Preparatory Steps):-
- रोगी के शरीर को औषधीय तेलों और घृत से मालिश कर तैयार किया जाता है।
- यह शरीर में मौजूद दोषों को ढीला करने में मदद करता है।
पंचकर्म के लाभ मिर्गी रोग में:-
- शरीर से विषाक्त पदार्थों और दोषों को बाहर निकालता है।
- मस्तिष्क को शांत और स्थिर बनाता है।
- दौरे की आवृत्ति और गंभीरता को कम करता है।
- मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार करता है।
पंचकर्म करते समय रखी जाने वाली सावधानियां:-
- पंचकर्म चिकित्सा हमेशा एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक के निर्देशन में ही कराई जानी चाहिए।
- मिर्गी के दौरे के दौरान कोई भी थेरेपी न करें।
- रोगी को चिकित्सा के बाद आराम और संतुलित आहार का पालन करने की सलाह दी जाती है।
आयुर्वेद में पंचकर्म थेरेपी मिर्गी रोग के लिए एक प्रभावी और समग्र उपचार प्रदान करती है। यह शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करने के साथ-साथ रोगी को प्राकृतिक और दीर्घकालिक राहत देती है।
मिर्गी रोग के लिए औषधियां (Herbal Medicines):-
मिर्गी (Epilepsy) के लिए कई आयुर्वेदिक और प्राकृतिक औषधियां मौजूद हैं, जो मिर्गी के दौरे को नियंत्रित करने में सहायक हो सकती हैं। हालांकि, इन्हें उपयोग करने से पहले विशेषज्ञ से परामर्श लेना आवश्यक है। नीचे कुछ हर्बल औषधियों के बारे में जानकारी दी गई है:
1. ब्राह्मी (Brahmi)
- ब्राह्मी मस्तिष्क को शांत करने और नर्वस सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद करती है।
- ब्राह्मी के पत्तों का रस या ब्राह्मी पाउडर को दूध के साथ सेवन करें।
- दिन में 1-2 बार।
2. शंखपुष्पी (Shankhpushpi)
- यह मस्तिष्क की क्रियाओं को संतुलित करती है और दौरे को रोकने में मदद करती है।
- शंखपुष्पी सिरप या चूर्ण का सेवन करें।
- डॉक्टर की सलाह अनुसार।
3. अश्वगंधा (Ashwagandha)
- यह तनाव को कम करती है और तंत्रिका तंत्र को स्थिर करती है।
- अश्वगंधा पाउडर को दूध या गर्म पानी में मिलाकर पिएं।
- 1-2 चम्मच प्रतिदिन।
4. ज्योतिषमती बीज (Jyotishmati Seeds)
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- यह नर्वस सिस्टम को पुनः सक्रिय करने में मदद करती है।
- बीजों का पाउडर बनाकर शहद के साथ लें।
- आधा चम्मच दिन में एक बार।
5. गिलोय (Giloy)
- गिलोय इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं में सहायक है।
- गिलोय के रस या काढ़े का सेवन करें।
- 10-20 ml प्रतिदिन खाली पेट।
6. पिप्पली (Long Pepper)
- यह मस्तिष्क के कार्यों को स्थिर करती है।
- पिप्पली पाउडर को शहद के साथ सेवन करें।
- 1 ग्राम दिन में दो बार।
7. बकोपा मोनिएरी (Bacopa Monnieri)
- स्मरण शक्ति बढ़ाने और मिर्गी के दौरे को कम करने में मदद करती है।
- इस पौधे का अर्क या चूर्ण दूध के साथ लें।
- 300-500 mg प्रतिदिन।
8. वच (Acorus Calamus)
- यह मस्तिष्क की नसों को मजबूत करती है।
- वच पाउडर को शहद या पानी के साथ लें।
- 250 mg दिन में एक बार।
मिर्गी रोग के लिए आहार (Dietary Recommendations):-
आयुर्वेद के अनुसार मिर्गी रोग के लिए, आहार का सही चयन वात दोष को संतुलित कर सकता है। नीचे कुछ आहार संबंधी सुझाव दिए गए हैं:-
वात-शामक भोजन:-
- गरम, स्निग्ध (तेलयुक्त) और पोषक भोजन का सेवन करें जैसे घी, दूध और मौसमी फल।
- हल्दी, जीरा और अजवाइन का प्रयोग करें जो पाचन क्रिया को सुधारते हैं।
- ठंडा भोजन, जंक फूड और अधिक मसालेदार चीजें।
योग और ध्यान:
- बालासन, शवासन और पद्मासन मिर्गी के रोगी के लिए लाभदायक हैं।
- अनुलोम-विलोम और भ्रामरी प्राणायाम मस्तिष्क को शांत करते हैं।
जीवनशैली में बदलाव:
- समय पर सोना और जागना।
- व्यायाम और योगासन का नियमित पालन।
- तनाव को कम करने के लिए मन को प्रसन्न रखना।
आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे:
- ब्राह्मी और शंखपुष्पी का कषाय दिन में दो बार इसका सेवन करें।
- गुड़ के साथ हल्दी का सेवन मिर्गी के लक्षण को कम करने में मदद करता है।
- मस्तक पर नारायण तैल का मसाज तनाव और मस्तिष्क की गतिविधियों को संतुलित करता है।
निष्कर्ष (Conclusion):-
आयुर्वेद एक समग्र चिकित्सा पद्धति है जो मिर्गी जैसे गंभीर रोग का समग्र रूप से उपचार कर सकती है। पंचकर्म, हर्बल मेडिसिन्स, योग और अच्छे जीवन शैली के माध्यम से मिर्गी के लक्षण को कम किया जा सकता है और रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। यह जरूरी है कि रोगी को अनुकूल आहार-विहार और चिकित्सा पद्धतियां अपनाने के लिए प्रयास करना चाहिए। आयुर्वेद की ये पद्धतियां सिर्फ रोग के लक्षण को कम नहीं करतीं, बल्कि व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को भी सुधारती हैं।
दोस्तों इस आर्टिकल में हमने आपको बताया कि मिर्गी रोग के लिए भारतीय आयुर्वेद में क्या इलाज बताया है इसके इस आर्टिकल में हमने आपको कुछ बिंदु बताये है मिर्गी रोग के आयुर्वेदिक उपचार के बारे में। मिर्गी रोग के पुरे उपचार के बारे में हम आपको अगले कुछ आर्टिकल्स में विस्तार से बताएँगे जैसे की उपचार में काम आने वाली आयुर्वेदिक जड़ी- बुटिया,पचकर्म चिकिस्या पद्धति आदि। अगर आपको और बीमारियों के बारे में जानकारी चाहिए तो हमारे ब्लॉग को विजिट करे नहीं तो कमेंट बॉक्स लिखे किस बीमारी के सम्बन्ध में जानकारी चाहिए आपको।
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