थोड़ा आप नाड़ी देखना सीख लें , अपने आप अपनी कम से कम अपनी तो देख ही लें । फिर अपने पड़ोसी की भी देख लें । नाड़ी के हिसाब से आप यह तय कर सकें कि आप बात की कैटेगरी में है या पित्त की कैटेगरी में हैं या कफ की कैटेगरी में हैं । नाड़ी का संबंध पूरे शरीर से है । इसका अन्तर्सम्बंध मैं आपको सिखाना चाहता हूँ , बताना चाहता हूँ । जैसे नाड़ी आपने यदि देखी तो टैम्परेचर आप तय कर सकते हैं कि कितना है आपके शरीर का , बिना थर्मामीटर के । थर्मामीटर की कोई जरूरत नहीं है । थर्मामीटर उतना एक्यूरेट नहीं है जितना आपका हाथ । थर्मामीटर मरा हुआ है और हाथ जीवित है । इसमें स्पंदन है , जीवन है , तो हाथ से नाड़ी परीक्षण करेंगे तो तापमान एक्युरेट आयेगा । नाड़ी देखकर आप यह तय कर सकते हैं कि कितना डिग्री बुखार है । नाड़ी देखकर आप यह तय कर सकते हैं कि आपका बी.पी. कितना है । हाई हो या लो हो । सिस्टोलिक कितना है , डायटोलिक कितना है । आठ - दस प्रकार की नाड़िया बताऊंगा वैसे तो बहुत प्रकार हैं । आपकी जितना समझ में आ सके । कम से कम कन्फ्यूजन हो । सरल भाषा हो । नाड़ी सबसे जटिल शास्त्र है । दवाओं से ज्यादा जटिल शास्त्र है ।
नाड़ी परिक्षण से रोग का पता करना :-
वाग्भट्ट जी के हिसाब से नाड़ी परीक्षण पहले सिखाना चाहिए । वाग्भट्ट जी के क्रम में नाड़ी परीक्षण पहले अध्याय में है । एक फंक्शनल नॉलेज होती है एक थ्योरिटिकल नॉलेज होती है । फंक्शनल नॉलेज हमेशा इन्ट्रेस्टिंग होता है । फंक्शनल नॉलेज में रोचकता होती है , इसके कारण अपना चित्त उसमें लगता है । थ्योरिटिकल नॉलेज थोड़ी बोरिंग होती है । मन में थोड़ा इन्ट्रैस्ट पैदा हो जाय विषय के प्रति फिर सीखने की चाह बढ़ जाती है । नाड़ी है क्या ? आपके शरीर में , आपने बार - बार सुना है तीन नाड़ियां हैं- इडा पिंगला , सुसुम्ना ।
इसको दूसरे नामों से भी जाना जाता है- एक सूर्य नाड़ी , एक चन्द्र नाड़ी , और एक मध्य नाड़ी । ये तीनो नाड़ियां शरीर के हर अंग में उपस्थित हैं , अपने अपने प्रभाव से । इनके अपने - अपने प्रभाव हैं । शरीर के हर अंग में इनका अपना असर है । जब जरूरत पड़ती है तो ये नाड़ियां बढ़ती हैं कम होती हैं । इनके माध्यम से ही शरीर के जीव का संचालन होता है , प्राण का संचालन होता है ।
नाड़ी शोधक प्राणायाम क्या होता है:-
इसका मतलब है नाड़ियों को शुद्ध कर दे ऐसे प्राणायाम । नाड़ियां शुद्ध हैं तो आप स्वस्थ हैं । नाड़ियां विकृत हैं तो आप अस्वस्थ हैं । आपकी एक नाड़ी है दाहिनी नाक में , जिसको आप कहते हैं सूर्य नाड़ी । एक है बायीं नाक में जिसको कहते हैं , चन्द्र नाड़ी और एक है मध्य में , यह मध्य नाड़ी है । मध्य नाड़ी सबसे अच्छी मानी जाती है , सूर्य और चन्द्र की तुलना में । मध्य नाड़ी , सूर्य नाड़ी और चन्द्र नाड़ी को नियंत्रित करने में बहुत मदद करती है । सूर्य नाड़ी का काम है आपको गुस्सा दिलाना , आपका ब्लड प्रेशर बढ़ाना , आपकी शुगर बढ़ाना , आपमें उत्तेजना पैदा करना । आप जितने खराब शब्द जानते हैं अपने जीवन में वो सब इस सूर्य नाड़ी के प्रभाव से आते हैं ।
नाड़ी परीक्षण का इतिहास :-
वाग्भट्ट जी कहते हैं कि खराबी नहीं होगी जीवन में , तो जीवन नहीं है इसलिए थोड़ा गुस्सा भी चाहिए , थोड़ी उत्तेजना भी चाहिए , थोड़ी खराबी भी चाहिए जीवन में । थोड़ा चिड़चिड़ापन भी चाहिए । थोड़ा दूसरों के बारे में खराब बातें आये , ऐसा भी चाहिए । जब जिसकी जरूरत है वह उस समय में चाहिए । क्योंकि आप सदगृहस्त हैं । सन्तों के लिए यह नहीं चाहिए । साधुओं के लिए यह नहीं चाहिए । साधू , सन्त , ब्रह्मचारी को सूर्य नाड़ी नहीं चाहिए , ऐसा मान सकते हैं । सूर्य नाड़ी नहीं होगी तो कोई बच्चा पैदा नहीं कर सकता । सूर्य नाड़ी की ताकत पर ही जीवन आगे बढ़ता है । ये सब जरूरत के हिसाब से आप में हों ।
लेकिन विज्ञान कहता है कि शरीर में ऐसी व्यवस्था है कि गुस्सा ज्यादा देर टिकेगा नहीं , उत्तेजना ज्यादा देर टिकेगी नहीं , दूसरे के प्रति खराब विचार , दूसरे के प्रति घृणा ज्यादा देर टिकेगी नहीं । आप कोई भी काम करते हैं तो बी.पी. बढ़ता ही है । जब आप मेहनत करते हैं तो आपका बी.पी. बढ़ता है और उसके बाद शांत हो जाता है । लेकिन जब आप बी.पी. के मरीज होते हैं तो आपका बी . पी . बढ़ता है लेकिन घटता नहीं है । शुगर भी बढ़ता है जब आप कोई काम करने जाते हैं तो , और थोड़ी देर बाद कम भी हो जाता है । ये सारी चीजें सिर्फ नाड़ी से संबंधित होती हैं , वही सूर्य नाड़ी । इसकी बहुत जरूरत है ।
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जीवन इसी से चलता है । फिर इसके विपरीत है चन्द्र नाड़ी । चन्द्र नाडी वही जो आपको कल्पनाशीलता सिखाये । आप में प्रेम , वात्सल्य , करूणा , दया , ममता ये सारे गुण पैदा करती है । आप बहुत इन्टैलीजैन्ट हैं , आप बहुत होशियार हैं , आप बहुत ईमानदार हैं । आप हमेशा सत्य बोलते हैं , कभी भी दूसरे की बुराई सुनते भी नहीं हैं , दूसरे की बुराई नहीं करते हैं तो आप समझ लीजिए कि आप चन्द्र नाड़ी के प्रभाव में हैं । चिकित्सा करने वाले लोग नाड़ियों के हिसाब से मनुष्यों के स्वभाव का वर्गीकरण करते हैं कि आदमी चन्द्र नाड़ी वाला है या सूर्य नाड़ी वाला है । इसके बाद उसकी आंखें देखकर हम पता करते हैं कि आदमी किस कैटेगरी वाला है ।
आंखें कभी झूठ नहीं बोलती हैं और आंखों से कोई बच नहीं सकता है । इसलिए दुनिया के हर एयरपोर्ट पर आंखों का ही परीक्षण होता है क्योंकि ये झूठ नहीं बोलती हैं । सूर्य नाड़ी और चन्द्र नाड़ी के क्लासिफिकेशन / वर्गीकरण से दवाओं का क्लासिफिकेशन / वर्गीकरण हो जाता है कि सूर्य नाड़ी वाली दवायें देनी हैं । या चन्द्र नाड़ी वाली दवायें देनी हैं । इसके बाद स्वभाव का परीक्षण करते हैं तो अन्त में दो या तीन दवायें ही बनती हैं । तो ये सारी दवाओं का खेल नाड़ियो से ही संचालित है । मध्य नाड़ी दोनो के बीच की नाड़ी है ।
मध्य नाड़ी वाले पेशेन्ट न तो ज्यादा गुस्सा ' करेंगे और न ही ज्यादा ठण्डा रहेंगे । न तो ज्यादा उत्तेजित होंगे और न ज्यादा शान्त होंगे । न तो ज्यादा किसी से घृणा करेंगे ओर न ही किसी से ज्यादा प्यार करेंगे । वो बीच वाले हैं । आयुर्वेद ये कहता है कि ये बीच वाला रास्ता ही अच्छा है । बहुत सदगुण भी नहीं चाहिए , बहुत अवगुण भी नहीं चाहिए । बीच वाला रास्ता चाहिए । चन्द्र नाड़ी ज्यादा सक्रिय होने से आदमी कायर भी हो जायेगा और नपुंसक भी हो जायेगा । जब चन्द्र नाड़ी बहुत सक्रिय हो जाती है तो बिल्कुल कायरता , बिल्कुल नपुंसकता आ जाती है । ऐसी स्थिति में इलाज करने में काफी दिक्कत आती है ।
इसलिए आपके जीवन की सब चीजें संतुलित होनी चाहिए । वही आपके जीवन की सबसे अच्छी स्थिति है । भारत में किसी भी ऋषि ने सदगृहस्थों के लिए सब कुछ त्यागने की बात नहीं की है इस देश के सभी शास्त्र ये कहते हैं कि त्याग के साथ भोग करना है । सिर्फ त्याग नहीं करना है और सिर्फ भोग नहीं करना है । सदगृहस्थों के लिए कमण्डल लेकर हिमालय में जाना नहीं है । त्याग पूर्वक भोग मध्य नाड़ी कराती है । प्रेम पूर्वक गुस्सा भी मध्य नाड़ी करवाती है । माँ जैसी है ये मध्य नाड़ी । सामान्य रूप से जो स्वस्थ स्त्रियां हैं उनकी मध्य नाड़ी ही प्रबल होती है । ' सामान्य रूप से जो स्वस्थ पुरुष हैं उनकी सूर्य नाड़ी प्रबल है । सामान्य रूप से बच्चों की चन्द्र नाड़ी प्रबल है । जिनकी चन्द्र नाड़ी प्रबल है वो कफ प्रधान ही होंगे ।
जिनकी सूर्य नाड़ी प्रबल है वो पित्त प्रधान होंगे । वात वाले लोग मध्य नाड़ी वाले लोग होते हैं , सामान्य रूप से । अब ये नाड़ी को पहचाने कैसे ? तो एक तरीका तो ये है कि आपकी कौन सी नाड़ी प्रबल है यह जानने के लिए नाक के नीचे उंगली रखें और देखें कि वायु दाहिनी नाक से तेज चल रही है या बायीं नाक से तेज चल रही है । जिस नाक से तेज चल रही है वही नाड़ी आपकी है । यानि यदि आपकी सूर्य नाड़ी चल रही है तो आप पित्त के प्रभाव में हैं और यदि चन्द्र नाड़ी चल रही है तो आप कफ के प्रभाव में हैं । अपना इलाज करते समय या दूसरों का इलाज करते समय आप यह ध्यान रख सकते हैं कि आप इस समय किसके प्रभाव में हैं- पित्त के या कफ के ।
मध्य नाड़ी का ज्यादा असर जो होता है वो शरीर के लैफ्ट और एक्सट्रीम लैफ्ट में होता है , जो ब्रेन से कनैक्ट है । इसलिए माना भी जाता हैकि स्त्रियों की नाड़ी परीक्षा जब की जाती है तो उनकी बायें हाथ की नाड़ी परीक्षा की जाती है और पुरूषों की दाहिने हाथ की नाड़ी परीक्षा की जाती है । रोज नाड़ी परीक्षण करने से नाड़ी परीक्षण का अभ्यास हो जाता है । घर के लोगों के साथ अभ्यास करिये , छोटे बच्चों के साथ अभ्यास करिये । जब भी मौका मिले वहाँ इसका अभ्यास कर सकते हैं । 15-20 मिनट भी अभ्यास किया तो 8-10 दिन में बराबर आप को अभ्यास हो जायेगा ।
नाड़ी परीक्षण और वात, पित और कफ :-
अब आगे वात , पित्त , कफ , की तरफ चलते हैं । नाड़ी पर आप ने हाथ रखा और इस पर स्पन्दन महसूस करना शुरू किया । अब इन नाडियों की धड़कन गिनना शुरू करना है , और स्पन्दन आप जब गिनेंगे तो सबसे अच्छी गिनती आयेगी , बीच की उंगली पर । आगे और पीछे वाली उंगली पर कम आयेगी लेकिन बीच वाली उंगली पर सबसे अच्छी गिनती आयेगी । मध्य नाड़ी है बीच वाली उंगली । महिलाओं में मध्य नाड़ी की ही गिनती सबसे अच्छी तरह से काउण्ट होती है , और यदि आपने ये काउन्टिंग सीख ली तो समझ लो आप ने आधा जग जीत लिया ।
अब इसकी काउन्टिंग कैसे करेंगे ? एक मिनट में आपको इसकी धड़कन गिननी है । नाड़ी एक मिनट में कितनी चलनी चाहिए कि व्यक्ति स्वस्थ है । इसकी एक सूची बताता हूँ । पहले बच्चों से शुरू करता हूँ । छोटे बच्चे हैं । उनकी एक मिनट में कितनी चलनी चाहिए ? स्वस्थ हैं या अस्वस्थ हैं । सबसे पहले गर्भाशय के बच्चों की नाड़ी परीक्षा जो माँ की नाड़ी की मदद से की जाती है । ऐसे बच्चों की धड़कन / स्पन्दन एक मिनट में 140 से 150 होनी चाहिए तभी बच्चा स्वस्थ है । गर्भस्थ शिशु जैसे ही जन्म लेगा स्पन्दन घट जायेगा । इसके बाद जीवन में यह स्पन्दन उम्र के हिसाब से घटता ही जायेगा । जन्म लेते समय सबसे ज्यादा होता है ।
नाड़ी परिक्षण के मुताबिक विभिन्न आयु में रक्तचाप:-
नाड़ी गति प्रति मिनट
तुरन्त पैदा हुआ बच्चा 140
शिशु ( 6 माह तक ) 120-130
बालक( 5-6 वर्ष तक ) 100
युवा( 15 वर्ष तक ) 90
प्रौढ़ ( 35 वर्ष तक ) 70 - 75
वृद्ध ( 35-50 वर्ष तक ) 70
अति वृद्ध 75-80
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