Header ads 728*90

नाड़ी परीक्षण /जांच से शरीर का तापमान और शरीर की प्रकृति के बारे मे कैसे पता करे?\How to know body temperature and body nature through pulse test/examination?

please use translator to read in other language 

दोस्तों पिछले आर्टिकल में हमने आप को नाड़ी परीक्षण \ नाड़ी को जांच कर अपनी बीमारी पता लगाने  के बारे में बताया और इस \आज के आर्टिकल में हम आपको नाड़ी जाँच के जरिये से शरीर का तापमान और शरीर की प्रकृति के बारे मे बताएँगे। 


इस आर्टिकल में हम आपको समजायँगे की नाड़ी परीक्षण \ नाड़ी को जांच कर हम कैसे पता लगा सकते है की हम बीमार है या फिर स्वस्थ।   अगर हमारी नाड़ी का स्पंदन 60 बार है तो ठीक है हमारे शरीर का तापमान सामान्य है 60 से ऊपर या निचे है तो हम बीमारी के शिकार है। इसी तरह नाड़ी परीक्षण \ नाड़ी को जांच से हम शरीर की प्रकति के बारे में पता कर सकते है की हमारी प्रकति वात पित कफ तीनो में से कौन सी है आइये इनके बारे में विस्तार से जानते है। 

  • नाड़ी द्वारा शरीर के तापमान की जाँच:-
  • नाड़ी द्वारा शरीर की प्रकृति की जाँच :-

नाड़ी द्वारा शरीर के तापमान की जाँच:-

नाड़ी परीक्षण \ नाड़ी को जांच से आप पता कर लेंगे कि आपके मरीज का बी.पी. हाई है या लो है । बी . पी . का पता लगने पर आप अपने मरीज को यह तय करेंगे कि यह वात वाला है या पित्त वाला है या कफ वाला है । इसके बाद आप परफैक्ट चिकित्सा कर पायेंगे , थोड़ी अच्छी बेहतर । 

मान लो नाड़ी एक मिनट में 60 है तो टैम्परेचर ( इन्टरनल बॉडी टैम्परेचर ) 98 डिग्री फॉरेनहाइट ही होगा । यदि नाड़ी 60 से कम है तो टैम्परेचर कम ही होगा । इसका मतलब की नाड़ी 60 से कम होने पर शरीर ठण्डा होगा और शरीर का टैम्परेचर 98 डिग्री फॉरेनहाइट से कम नहीं होना चाहिए । टैम्परेचर और नाड़ी का सीधा संबंध है । नाड़ी घटेगी तो टैम्परेचर भी घटेगा । नाड़ी बढ़ेगी तो टैम्परेचर भी बढ़ेगा । नाड़ी में 5 का प्लस - माइनस हो सकता है । जैसे 60 का 55 भी हो सकता है या 65 भी हो सकता है । 

यदि नाड़ी 55 से 65 के बीच होगी तो टैम्परेचर 98 डिग्री फॉरेनहाइट ही होगा । नाड़ी 55 से कम होने पर टैम्परेचर भी कम होगा ।   मान लो नाड़ी 1 मिनट में 80 है तो टैम्परेचर आ जायेगा 100 डिग्री फॉरेनहाइट । मान लो नाड़ी की गति 90 है तो टैम्परेचर हो जायेगा 101 डिग्री फॉरेनहाइट । और यदि नाड़ी 100 है तो टैम्परेचर 103 हो जायेगा । और यदि 120 हो गयी तो टैम्परेचर 104 हो जायेगा ।130 नाड़ी होगी तो टैम्परेचर 105 हो जायेगा । नाड़ी जब 140 होगी तो टैम्परेचर 106 डिग्री फॉरेनहाइट हो जायेगा । मतलब सीधा सा ये है कि हर 10 स्पन्दन बढ़ने से 1 डिग्री फॉरेनहाइट टैम्परेचर बढ़ जायेगा । मतलब टैम्परेचर बढ़ेगा तो नाड़ी का स्पन्दन भी बढ़ेगा और टैम्परेचर कम होगा तो नाड़ी का स्पन्दन भी कम होगा ।   
इसी प्रकार जब नाड़ी का स्पन्दन बढ़ेगा तो शरीर का टैम्परेचर भी बढ़ेगा और जब नाड़ी का स्पन्दन कम होगा तो शरीर का टैम्परेचर भी कम होगा । यदि मान लो शरीर का टैम्परेचर बढ़ा है तो इसको नीचे लाने / कम करने के लिए क्या करना पड़ेगा ? मान लो शरीर का टैम्परेचर 106 डिग्री हो गया है । तो इसको नीचे ही लाना पड़ेगा क्योंकि शरीर का टैम्परेचर 106 डिग्री से ऊपर जाने पर बहुत तकलीफ बढ़ जाती है । 

मस्तिष्क की कई बीमारियों के आने का खतरा बढ़ जाता है , जब टैम्परेचर बहुत ऊँचा चला जाय तो ब्रेन हैम्ब्रेज , ब्रेन डैमेज होने की संभावना बढ़ जाती है । ज्यादा टैम्परेचर बहुत देर तक बना नहीं रहना चाहिए । टैम्परेचर बढ़ने पर उसको जल्दी से जल्दी कम करना चाहिए । दिमाग में गर्मी चढ़ जाना बहुत ही खतरनाक होता है । टैम्परेचर कम करने के लिए साफ कपड़े की पट्टी को ठण्डे पानी में भिगोकर माथे पर तब तक रखना चाहिए जब तक कि शरीर का टैम्परेचर कम न हो। जाय ।

नाड़ी द्वारा शरीर की प्रकृति की जाँच :-

नाड़ी को पकड़कर शरीर के प्रकृति का पता कैसे लगायेंगे कि नाड़ी कफ की है या वात की है या पित्त की है । जो प्रकृति को अच्छी तरह समझते हैं वही शरीर की प्रकृति को अच्छे से पकड़ पायेंगे । नाड़ी जब सर्प की तरह चल रही हो मतलब टेढ़ी - मेढ़ी चल रही हो तो समझ लो कि वह व्यक्ति वात के रोगों से पीड़ित है । मतलब वात उसका विकृत स्थिति में है । जैसे जब सर्प चलता है तो उसका पेट फूलता और पिचकता है , उसी प्रकार से नाड़ी भी फूलती और पिचकती है । 

नाड़ी जब झटका दे रही है या जिस प्रकार मेंढ़क उछल - उछल कर चलता है या कूदता है उस प्रकार चल रही है तो समझ लो कि व्यक्ति पित्त के कोप से पीड़ित है ।  जब नाड़ी एक रिद्म से चल रही हो या जिस प्रकार मोर एक रिद्म से धीरे - धीरे चलता है या बत्तख एक रिद्म से धीरे - धीरे चलती है उस प्रकार चल रही हो तो समझ लो कि व्यक्ति कफ के रोग से पीड़ित है । 

नाड़ी परीक्षण \ नाड़ी को जांच के ज्ञान की ये सरलतम स्थिति है । वाग्भट्ट जी ने आगे और गहराई में विस्तार से वर्णन किया है । ऐसी स्थिति में कॉम्पलीकेशन और बढ़ जाते हैं । जैसे नाड़ी को जब इससे आगे जानेंगे तो तीनों प्रकृतियां आपस में मिलकर भी लक्षण बताती हैं । जैसे - कफ - वात , कफ - पित्त , वात - पित्त , कभी - कभी वात - पित्त - कफ एक साथ मिल जाती हैं ।

दोस्तों अगर आपको इस आर्टिकल में बताई जानकारी अच्छी लगी हो तो इस आर्टिकल को शेयर करे जिससे कोई और भीं नाड़ी परीक्षण \ नाड़ी को जांच कर अपनी बीमारी पता लगाने  के बारे में समझ सके। हमें कमेंट करे की अब किस बीमारी के बारे जानना कहते है। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ