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अहोई अष्टमी व्रत : मातृत्व की शक्ति और संतान के संरक्षण का पर्व
भारत की संस्कृति में हर व्रत और त्योहार के पीछे कोई न कोई गहरी भावना, उद्देश्य और मानवीय मूल्यों का संदेश छिपा होता है। इन्हीं में से एक पर्व है अहोई अष्टमी, जो मातृत्व की करुणा, त्याग और अपने बच्चों के लिए असीम प्रेम का प्रतीक है। यह व्रत मुख्यतः माताएँ अपने पुत्रों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं।
यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन दीपावली से लगभग आठ दिन पहले आता है। इस व्रत का महत्व उत्तर भारत के राज्यों — उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान आदि — में विशेष रूप से देखा जाता है।
अहोई अष्टमी का अर्थ
‘अहोई’ शब्द संस्कृत के “अह” (दिन) और “हिंसा” (हानि) से मिलकर बना है। इसका भाव है — संतान के जीवन में किसी प्रकार की हानि न हो। इस दिन अहोई माता की पूजा करके माताएँ यह संकल्प लेती हैं कि वे अपनी संतानों की सुरक्षा और भलाई के लिए पूरे हृदय से प्रार्थना करेंगी।
अहोई माता कौन हैं
अहोई माता को संतान की रक्षक देवी माना गया है। उनकी प्रतिमा या चित्र में प्रायः एक बिल्ली (सिंहनी के समान) और सात छोटे शावक दिखाए जाते हैं। यह सात शावक सात संतानों का प्रतीक हैं।
कहते हैं कि अहोई माता का संबंध पार्वती जी से भी जोड़ा जाता है। जिस प्रकार माँ पार्वती ने अपने पुत्रों गणेश और कार्तिकेय के लिए कठिन तप किया, उसी प्रकार माताएँ भी अपने बच्चों के लिए यह व्रत करती हैं।
अहोई अष्टमी की कथा
प्राचीन समय की बात है, एक साहूकार की पत्नी के सात पुत्र थे। एक दिन वह दीपावली से पहले घर की मरम्मत के लिए मिट्टी लाने जंगल गई। मिट्टी खोदते समय अनजाने में उसकी फावड़ी से एक साही (या बिल्ली) के बच्चे को चोट लग गई और वह मर गया। यह अनजानी भूल उसके जीवन में भारी साबित हुई।
कुछ ही दिनों में उसकी संतानें एक-एक करके मरने लगीं। साहूकार की पत्नी अत्यंत दुखी होकर ऋषि-मुनियों के पास गई और अपने पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। उन्होंने कहा कि वह कार्तिक कृष्ण अष्टमी के दिन अहोई माता का व्रत करे और सच्चे मन से प्रायश्चित करे।
उसने ऐसा ही किया। अहोई माता उसकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उसे आशीर्वाद दिया कि उसकी संतानें सुरक्षित रहेंगी। तभी से यह व्रत हर साल संतान की लंबी आयु और सुरक्षा के लिए किया जाने लगा।
अहोई अष्टमी व्रत विधि
अहोई अष्टमी की पूजा बड़ी श्रद्धा और शुद्धता से की जाती है। यहाँ इसकी संपूर्ण विधि दी जा रही है
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1. प्रातः स्नान और संकल्प – सूर्योदय से पहले स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। मन में संकल्प लें कि “मैं अहोई माता का व्रत अपने पुत्र/पुत्री की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए कर रही हूँ।”
2. पूजन स्थल की तैयारी – दीवार या कागज पर अहोई माता का चित्र बनाएं। इसमें सात शावक और एक बिल्ली (माता का प्रतीक) अंकित करें। पास में एक छोटा कलश जल से भरकर रखें।
3. पूजन सामग्री – जल, चावल, रोली, दूध, गेहूँ के दाने, फूल, दीया, मिठाई और सात प्रकार के अनाज रखें।
4. पूजन विधि –
* सबसे पहले अहोई माता को प्रणाम करें।
* दीया जलाएं और कथा पढ़ें।
* गेहूँ के सात दाने माता के सामने रखें — ये सात संतान या सात पीढ़ियों की समृद्धि का प्रतीक हैं।
* पूजन के बाद कथा सुनना या पढ़ना अनिवार्य माना गया है।
5. व्रत का नियम – यह व्रत पूरे दिन निर्जला या फलाहार रहकर किया जाता है।
6. संध्या के समय – जब तारे निकलते हैं, तब अहोई माता और सप्तर्षि तारों को जल अर्पित किया जाता है।
7. व्रत खोलना – तारों के दर्शन के बाद महिलाएँ व्रत तोड़ती हैं और संतान के हाथ से जल ग्रहण कर आशीर्वाद लेती हैं।
अहोई अष्टमी का धार्मिक महत्व
अहोई अष्टमी व्रत केवल धार्मिक नहीं, बल्कि भावनात्मक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्रत मातृत्व की शक्ति और त्याग का उत्सव है।
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माना जाता है कि जो स्त्री यह व्रत पूरी श्रद्धा से करती है, उसके बच्चों को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता।
* संतान का स्वास्थ्य, दीर्घायु और सफलता बढ़ती है।
* यह व्रत घर में सुख-शांति और समृद्धि भी लाता है।
इस दिन किया गया व्रत केवल संतान के लिए ही नहीं, बल्कि परिवार के सभी सदस्यों के लिए शुभ फलदायी होता है।
अहोई अष्टमी और करवा चौथ का संबंध
अहोई अष्टमी को करवा चौथ के आठ दिन बाद मनाया जाता है। करवा चौथ जहाँ पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है, वहीं अहोई अष्टमी संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए।
दोनों व्रतों में समानता यह है कि दोनों में निर्जल उपवास और रात्रि में तारा दर्शन का नियम होता है।
तारा दर्शन का महत्व
अहोई अष्टमी की सबसे प्रमुख परंपरा है — तारे देखकर व्रत खोलना।
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कहा जाता है कि तारों को देखने से माताएँ यह अनुभव करती हैं कि जैसे आकाश के तारे अचल और अमर हैं, वैसे ही उनकी संतानों का जीवन भी दीर्घ और उज्ज्वल हो।
आधुनिक युग में अहोई अष्टमी
आज के व्यस्त जीवन में भी यह व्रत अपनी पवित्रता और महत्व बनाए हुए है।
कई आधुनिक माताएँ चाहें शहरों में हों या विदेश में, वे भी डिजिटल माध्यमों से अहोई माता की पूजा करती हैं, ऑनलाइन कथा सुनती हैं, और परिवार के साथ यह परंपरा निभाती हैं।
यह व्रत केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि माँ और बच्चे के बीच आध्यात्मिक संबंध का उत्सव बन गया है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण
अहोई अष्टमी हमें यह सिखाती है कि सच्ची शक्ति भक्ति और प्रेम में होती है।
माँ का हृदय जब अपनी संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना करता है, तो वह स्वयं दिव्य शक्ति का माध्यम बन जाता है।
यह व्रत मातृत्व के उस रूप का प्रतीक है जिसमें निष्काम प्रेम और समर्पण सर्वोच्च स्थान पर होता है।
निष्कर्ष
अहोई अष्टमी केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि माँ के असीम प्रेम, त्याग और विश्वास की अभिव्यक्ति है।
यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि ईश्वर ने माँ को इसलिए बनाया क्योंकि वह प्रेम और रक्षा का सबसे सशक्त रूप है।
इस दिन की पूजा, कथा और उपवास न केवल संतान के लिए कल्याणकारी हैं, बल्कि पूरे परिवार में **शांति, आस्था और एकता** का वातावरण भी स्थापित करते हैं।
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जब माताएँ अहोई माता के समक्ष नतमस्तक होकर कहती हैं —
"हे अहोई माता, मेरे बच्चों की रक्षा करना, उन्हें दीर्घायु, स्वस्थ और सफल बनाना"
तो यह व्रत एक साधना बन जाता है, एक ऐसा संकल्प जो प्रेम, विश्वास और भक्ति से भरा होता है।
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आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद
ENGLISH TRANSLATION
Ahoi Ashtami Vrat: A Festival of the Power of Motherhood and Protection of Children
Meaning of Ahoi Ashtami
Who is Ahoi Mata?
The Story of Ahoi Ashtami
Ahoi Ashtami Vrat Vidhi
Religious Significance of Ahoi Ashtami
Relationship between Ahoi Ashtami and Karva Chauth
The Importance of Stargazing
Ahoi Ashtami in the Modern Age
Spiritual Perspective
Conclusion
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