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वात - पित्त - कफ और त्रिदोष क्या है इनका हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है ? भाग -2 \What are Vata, Pitta, Kapha and Tridosha and what effect do they have on our health? part 2

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दोस्तों  पिछले  आर्टिकल में हमने जाना की वात - पित्त - कफ तीनो धातु हमारे स्वास्थ्य के लिए क्या महत्त्व रखते है दोस्तों "वात - पित्त - कफ और त्रिदोष क्या है इनका हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है ? भाग -1" इसी के भाग 2 हम जानेगे वात - पित्त - कफ तीनो धातुओं के बारे पूरी तरह से. . . . तो आइये जानते इन तीनो त्रिदोषों के बारे में फुल जानकारी। 


यह भी पढ़िए....................वात - पित्त - कफ और त्रिदोष क्या है इनका हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है ? भाग -1 \What are Vata, Pitta, Kapha and Tridosha and what effect do they have on our health? part 1

1 वात दोष :-
2 पित दोष :-
3 कफ दोष :-

1 वात दोष

वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात दोष को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इसके अनुसार जो तत्व शरीर में गति या उत्साह उत्पन्न करे वह ‘वात’ या ‘वायु’ कहलाता है।  शरीर में होने वाली सभी प्रकार की गतियाँ इसी वात के कारण होती हैं। जैसे कि हमारे शरीर में जो रक्त संचार होता है वो भी वात के कारण है। वात की वजह से ही शरीर की सभी धातुएं अपना अपना काम करती हैं। शरीर के अंदर मौजूद जितने भी खाली स्थान हैं वहां यह ‘वायु’ पाई जाती है। शरीर के किसी एक अंग का दूसरे अंग के साथ जो संपर्क है वो भी वात के कारण ही संभव है।

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वात इतना प्रभावशाली है कि यह अन्य दोषों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा देता है। इसके कारण अगर उस जगह पर पहले से ही वो कोई दोष मौजूद है तो वो और बढ़ जाता है। हमारे शरीर के अंदर होने वाली कोई भी गतिविधि जिसमें गतिशीलता या मूवमेंट है वो वात की वजह से है। जैसे कि शरीर से पसीना, या मल-मूत्र निकलने की प्रक्रिया भी वात के कारण ही होती है। इस प्रकार देखें तो आयुर्वेद के अनुसार शरीर में सभी प्रकार के रोगों का मूल कारण वात ही है। जिस व्यक्ति के शरीर में वात दोष ज्यादा होता है वो वात प्रकृति वाला कहलाता है।

वात का शरीर में रहने का स्थान 

वात का शरीर में मुख्य स्थान कोलन या पेट माना जाता है। इसके अलावा नाभि से नीचे का भाग, छोटी व बड़ी आंतें, कमर, जांघ, टांग और हड्डियाँ भी वात के निवास स्थान हैं।

वात का आपके शरीर और स्वास्थ्य पर प्रभाव 

वात रुखा, शीतल, लघु, सूक्ष्म और चिपचिपाहट से रहित होता है। रुक्षता यानी रूखापन आदि वात के स्वाभाविक गुण हैं। वात के संतुलित होने से शरीर में रक्त का और मल-मूत्र का प्रवाह ठीक तरह से होता है। वात प्रकृति वाले लोगों में निम्न लक्षण पाए जाते हैं, जैसे कि शरीर में रूखापन, दुबलापन, धीमी और भारी आवाज और नीद की कमी। इसके अलावा आंखों, भौहों, ठोड़ी के जोड़, होंठों, जीभ, सिर, हाथों व टांगों में अस्थिरता भी वात के मुख्य लक्षण हैं। वात प्रकृति वाले लोगों में निर्णय लेने में जल्दबाजी, जल्दी क्रोधित होना व चिढ़ जाना, जल्दी डर जाना, बातों को जल्दी समझकर फिर भूल जाने जैसी आदतें पाई जाती हैं।    

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2 पित्त दोष 

पित्त दोष ‘अग्नि’ और ‘जल’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। पित्त शब्द संस्कृत के ‘तप’ शब्द से बना है जिसका मतलब है कि शरीर में जो तत्व गर्मी उत्पन्न करता है वही पित्त है। यह शरीर में उत्पन्न होने वाले एंजाइम और हार्मोन को नियंत्रित करता है। आम भाषा में इसे समझें तो हम जो कुछ भी खाते पीते हैं या सांस द्वारा जो हवा अंदर लेते हैं उन्हें खून, हड्डी, मज्जा, मल-मूत्र आदि में परिवर्तित करने का काम पित्त ही करता है। इसके अलावा जो मानसिक कार्य हैं जैसे कि बुद्धि, साहस, ख़ुशी आदि का संचालन भी पित्त के माध्यम से ही होता है।


पित्त में कमी से मतलब है कि आपकी पाचक अग्नि में कमी। अगर शरीर में पित्त दोष ठीक अवस्था में नहीं है तो इसका सीधा मतलब है कि आपके पाचन तंत्र में गड़बड़ी है। ऐसे लोगों को कब्ज़ से जुड़ी समस्याएं ज्यादा होती हैं। जिस व्यक्ति के शरीर में पित्त दोष ज्यादा होता है वो पित्त प्रकृति वाला कहलाता है।

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पित्त का शरीर में रहने का स्थान 

शरीर में पित्त का मुख्य स्थान पेट और छोटी आंत है।  इसके अलवा छाती व नाभि का मध्य भाग, पसीना, लिम्फ, खून, पाचन तंत्र व मूत्र संस्थान भी पित्त के निवास स्थान हैं।

पित्त का आपके शरीर और स्वास्थ्य पर प्रभाव 

वात की ही तरह पित्त दोष का भी शरीर के स्वास्थ्य और स्वभाव पर प्रभाव पड़ता है। पित्त का मुख्य गुण अग्नि है। पित्त के संतुलित होने से पेट और आंत से जुड़ी सारी गतिविधियां ठीक तरह से होती हैं। गर्मी ना बर्दाश्त कर पाना, शरीर का कोमल और स्वच्छ होना, त्वचा पर भूरे धब्बे, बालों का जल्दी सफ़ेद होना आदि पित्त के लक्षण हैं। इसका एक गुण तरल भी है जिसकी वजह से मांसपेशियों और हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन, पसीना, मल और मूत्र का अधिक मात्रा में बाहर निकलने जैसे लक्षण आते हैं। शरीर के अंगों से तेज बदबू (कच्चे मांस जैसी गंध) आना भी पित्त के कारण ही होता है।   

3 कफ दोष 

कफ दोष ‘पृथ्वी’ और ‘जल’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। दोषों के महत्व और क्रम के अनुसार कफ तीसरे स्थान पर आता है। कफ दोष शरीर के सभी अंगों का पोषण करता है और बाकी दोनों दोषों वात और पित्त को भी नियमित करता है।  हमारी मानसिक और शारीरिक काम करने की क्षमता, रोग प्रतिरोधक क्षमता, काम शक्ति, धैर्य, क्षमा और ज्ञान आदि कफ के गुण हैं। कफ में मौजूद तमोभाव ही नींद का मुख्य कारण है।


शरीर में अगर कफ की मात्रा में कमी आती है तो बाकी दोनों दोष अपने आप ही बढ़ने लगते हैं। कफ भारी, मुलायम, मधुर, स्थिर और चिपचिपा होता है। यही इसके स्वाभाविक गुण हैं। जिस व्यक्ति के शरीर में कफ दोष ज्यादा होता है वो कफ प्रकृति वाला कहलाता है।

कफ का शरीर में पाए जाने वाला स्थान 

हमारे शरीर में कफ का मुख्य स्थान पेट और छाती है। इसके अलवा गले का ऊपरी भाग, कंठ, सिर, गर्दन,  हड्डियों के जोड़, पेट का ऊपरी हिस्सा और वसा भी कफ के निवास स्थान हैं.

कफ का आपके शरीर और स्वास्थ्य पर प्रभाव 

कफ प्रकृति वाले लोगों में निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं। जैसे कि इनकी चाल स्थिर और गंभीर होती है। भूख, प्यास और गर्मी कम लगना, पसीना कम आना, शरीर में वीर्य की अधिकता, जोड़ों में मजबूती और स्थिरता, शरीर में गठीलापन और शारीरिक अंगों में चिकनाहट इसके प्रमुख लक्षण हैं। इसके अलावा कफ प्रकृति वाले लोग सुन्दर, खुशमिजाज, कोमल और गोर रंग के होते हैं।

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ENGLISH TRANSLATION 

Friends, in the last article we learned what importance the three metals Vata - Pitta - Kapha hold for our health. Friends, in the article "What are Vata - Pitta - Kapha and Tridosha and what is their effect on our health? Part -1" in its part 2 we will know completely about the three metals Vata - Pitta - Kapha. . . . So let us know the full information about these three Tridoshas.

1 Vata dosha
2 Pitta dosha
3 Kapha dosha

1 Vata Dosha

Vata Dosha is made up of two elements "Vayu" and "Aakash". Vata Dosha is considered to be the most important. According to this, the element which generates movement or enthusiasm in the body is called 'Vata' or 'Vayu'. All types of movements in the body are due to this Vata. Like the blood circulation in our body is also due to Vata. It is because of Vata that all the metals of the body do their work. This ‘air’ is found in all the empty spaces present inside the body. The contact of one part of the body with another is also possible only due to Vata.

Vata is so powerful that it transports other doshas from one place to another. Due to this, if any dosha is already present at that place, then it increases further. Any activity happening inside our body that has mobility or movement is due to Vata. For example, the process of sweating or excretion of urine and stool from the body also happens due to Vata. In this way, according to Ayurveda, Vata is the root cause of all types of diseases in the body. The person who has more Vata dosha in his body is called vata prakriti (one with vata nature).

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Vata’s place of residence in the body

The main place of data in the body is considered to be the colon or stomach. Apart from this, the part below the navel, small and large intestines, waist, thighs, legs, and bones are also the places of residence of the Vata.

Effect of Vata on your body and health

Vata is dry, cold, small, subtle, and devoid of stickiness. Dryness is the natural property of Vata. When Vata is balanced, the flow of blood urine, and feces in the body happens properly. The following symptoms are found in people with Vata Prakriti, such as dryness in the body, leanness, slow and heavy voice, and lack of sleep. Apart from this, instability in the eyes, eyebrows, chin joint, lips, tongue, head, hands, and legs are also the main symptoms of Vata. People with Vata Prakriti have habits like haste in making decisions, getting angry and irritated quickly, getting scared quickly, understanding things quickly, and then forgetting them.

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2 Pitta Dosha

Pitta Dosha is made up of two elements ‘Agni’ and ‘Water’. The word Pitta is made up of the Sanskrit word ‘Tapa’ which means that the element which produces heat in the body is Pitta. It controls the enzymes and hormones produced in the body. If we understand it in simple language, then it is Pitta who converts whatever we eat and drink or the air we breathe into blood, bone, marrow, excreta, urine, etc. Apart from this, mental functions such as intelligence, courage, happiness, etc. are also controlled through Pitta.

Reduction in Pitta means a reduction in your digestive fire. If the Pitta dosha in the body is not in a good state, then it directly means that there is a problem in your digestive system. Such people have more problems related to constipation. A person who has more Pitta dosha in his body is called Pitta Prakriti.

Place of Pitta in the body

The main place of Pitta in the body is the stomach and small intestine. Apart from this, the middle part of the chest and navel, sweat, lymph, blood, digestive system, and urinary system are also the places of residence of Pitta.

Effect of Pitta on your body and health

Like Vata, Pitta dosha also affects the health and nature of the body. The main quality of Pitta is fire. When the bile is balanced, all the activities related to the stomach and intestine happen properly. The inability to tolerate heat, the body being soft and clean, brown spots on the skin, hair turning grey early, etc. are the symptoms of bile. One of its properties is also liquid due to which symptoms like looseness in the joints of muscles and bones, sweating, and excessive discharge of stool and urine occur. Strong smell (smell like raw meat) coming from the body parts is also due to bile.

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3 Kapha Dosha

Kapha dosha is made up of two elements ‘earth’ and ‘water’. According to the importance and order of doshas, ​​kapha comes in third place. Kapha dosha nourishes all the organs of the body and also regulates the other two doshas, ​​vata, and pitta. Our mental and physical working capacity, immunity, sexual power, patience, forgiveness knowledge etc. are the qualities of kapha. The tamobhaav present in kapha is the main cause of sleep.

If the amount of kapha in the body decreases, then the other two doshas start increasing automatically. Kapha is heavy, soft, sweet, stable, and sticky. These are its natural qualities. A person who has more kapha dosha in his body is called kapha prakriti.

Place of Kapha found in the body

The main place of kapha in our body is the stomach and chest. Apart from this, the upper part of the throat, throat, head, neck, bone joints, and the upper part of the stomach and fat are also the abode of kapha.

Effect of Kapha on your body and health

The following symptoms are found in people with Kapha Prakriti. For example, their gait is steady and serious. Less hunger, thirst, and heat, less sweating, excess semen in the body, strength, and stability in joints, muscular body, and smoothness in body parts are its main symptoms. Apart from this, people with Kapha Prakriti are beautiful, cheerful, soft, and fair in complexion.

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