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दोस्तो आज हम आपके लिए एंेसे प्रश्न का उत्तर ले कर आए है जिसका उत्तर माता के सभी भक्त जानना चाहंेंगंे ़़़़़़------ कहते है कि मां दुर्गा जल्दी ही प्रसन्न हो जंाती है इसलिए नवरात्रि के अवसर पर मां दुर्गा और उनके अन्य रूपो कि पुजा करतें है
नवरात्रि एक ऐसी नदी है जो शक्ति आौर भक्ति के तटों के बीच में बहती रहती है हिन्दु धर्म - ग्रंथों मे यह प्रासंगिकता स्वंय सिध्द है नवरात्र वर्ष में दो बार आती है। एक तो शरादीय नवरात्रा जो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आते है और दुसरे जो चैत्र माह के शुक्ल पक्ष मे आते है। फिलहाल हम बात कर रहें है चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के नवरात्रि की। भारतिय पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष कि प्रतिपदा मतलब एकम संे लेकर नवमी तक चैत्र नवरात्र मात्र शक्ति कि आराधना का दौर होता है विधि का क्षय या व्रध्दी भी हो सकती है कभी - कभी सयुक्त तिथी हो जाती है। और तिथि कि व्रध्दी होने पर दस नवरात्र हो जातेे है।
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अन्तः करण कि स्वच्छता का पर्व है नवरात्र
नवरात्र में किया जाने वाला उपवास वह ‘‘साबुन‘‘ है जो पाचन तंत्र को स्वच्छ रखता है। यह अतःकरण के स्वच्छता की सीढी है। यह तब अधिक पवित्र हो जाता है जब र्निमल, निश्छल और समर्पित नवरात्रि में माता कि आराधना कि जाती है। उपवास के साथ माता की आराधना करते हुए मात्रशक्ति का अनुष्ठान किया जाता है। मार्कण्डेय पुराण मंे सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अन्र्तगत देवी महात्मय मंे देवीदुन संवाद के क्षी दुर्गासप्तदशी के 5वे अध्याय के 71वे श्लोक में कहा गया है कि ‘‘या सर्वभुतेषु मात्र-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः‘‘ अर्थात जो देवी सब प्राणियो में मात्र-रूप में स्थित उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार। देवी कवच में ंमात्रशक्ति अर्थात माता दुर्गा के नौ रूपो के बारे मे बताया गया है। जैसे कि माता शैलपुत्री, माता ब्रम्हचारिणी, माता चन्द्रघण्टा, माता कुष्माण्डा, माता स्कन्दमाता, माता कात्यायनी, माता कालरात्री, माता महागौरी और माता सिध्दीदात्री।
स्नेह कि सर्वोपरि है
नवदुर्गा कि मात्र-शक्ति के रूप् में भक्ति कि भावना के मुल में माॅ के प्रति-श्रध्दा रेखांकित होती है। परिवार के उदाहरण से उसको आसानी से समझा जा सकता है, पिता और माता जिसके दो धुव होते है। परिवार उम प्रायःपिता कि पोथी ‘अनुशासन के अध्याय‘ होते है, जब कि माता के अध्याय में स्नेह कि स्याही से अंकित ‘आत्मीयता के अक्षर‘ होते है। तात्पर्य यह है कि संतान कि पुकार सुनकर मां तुरंत पसीज जाती है। इसलिए देवी को मां के रूप में पूजना अधिक फलदायी होता है। वर्तमान संदर्भ में भी समझे
वर्तमान संदर्भाे में नवरात्रि की यह प्रासंगिकता है कि माॅ ने सदैव अपनी संतान कि रक्षा कि है, इसलिए संतान परिवार में सदैव मां, बहिन, बेेेटी बहु तथा अन्य को समुचत आदर-स्नेह दें। मात्र व नारी शक्ति को कम नहा आकना चाहिए। इसी से नारी शक्ति का अनुमान लगाया जा सकता है कि आज ज्ञान-विज्ञान तथा धरती-आसमान तक नारी ने अर्थात मात्र-शक्ति ने अपने साम्रत्य को सिध्द कर दिया
है। मात्र-शक्ति कि महिमा के संदर्भ ये काव्य पंक्तियां बहुत पंासंगिक हैः- ‘शैलपुत्री‘ कि शक्ति शिखर, ‘ब्रह्ाचारणी‘ कि नीति, ‘चंद्राघण्टा‘ से आशय शुभ कर्मो से प्रीत, ‘कुष्माण्डा‘ स््रा्रष्टि को साहस का संकेत, ‘स्कन्दमाता‘ स्वरूप में स्नेह सदा समवेत, ‘कात्यायनी‘ कृपानिधि, ‘कालरात्रि‘ उत्थान, ‘महागौरी‘ सुयश सूधा, ‘सिध्दीदात्री‘ मान मां सदैव हितकारिणी शुभता का निर्माण, मां मतलब ममता मयी, मां करती सबका कल्याण ।
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ऐसे करे मां कि आराधना
तो आइए जानते है कि समस्त कामनाओं कि सिध्दीदात्री शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के नौ रूपो कि नवरात्रि में पुजा अर्चना का विधान कैसे पुरा करते है आइए जंनते है नवरात्रा में मां दुर्गा कि पुजा अर्चना कि सम्पुर्ण विधि के बारे में
पुजन विधि
आराधना लेपन, गौ मुत्र से पुजन स्थल को पवित्र करें। पुजन कक्षा में देवी की प्रतिमा (तस्वीर) के सामने पुर्व मुखी में बैठना ज्यादा उत्तम रहता है कलश के इशान कोण यानि देवी की प्रतिमा के दाहिनी तरफ स्थापित करें तथा घी के दिपक को भी देवी के दाहिनी ओर ही स्थापित कर के जलाए। पहले वैदिक मंत्रो के साथ गणेश जी कि पुजा करनी चाहिए यानि गणपति स्थापना के बाद माता का पुजन शुरू करें।
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कलश पुजन
भूमि स्पर्श करने ‘ ऊ मुरसि भूमि रस्यदितिरसि‘के बाद वेदी बना कर उस पर घट स्थापना करनी चाहीए। वेदी निर्माण के लिए मिटट्री पवित्र जगह से ली जानी चाहिए। वेदी में जौ या गेहु ‘ऊॅ धन्यमसि धिनुहि देवान्प्राणायत्वोदानायत्वा‘ मंत्र पढ़कर मिलानी चाहिए।
उसके बाद कलरूा मंत्र पढकर स्थापित करें। वरूण भगवान का ध्यान कर कलश में गंगाजल या किसी शिववालय का जल, किसी देवालय का पवित्र जल डाले। जल डालने के बाद चंदन, कुश, सुपारी तथा पंच पल्लव डालकर कलश के गले में मौली सुत्र बांधना चाहिए। ढक्कन पर चावल रखकर उस पर नारीयल व लाल रखना चाहिए। नारियल पर स्वास्तिक बना कर मौली बांधनी चाहिए इसके बाद कलश में वरूण भगवान का पुजन करना चाहिए।
ENGLISH TRANSLATION
Friends, today we have brought for you the answer to such a question, the answer to which all the devotees of Mata would like to know - ------- It is said that Maa Durga becomes happy easily, hence on the occasion of Navratri, Maa Durga and her other forms are worshiped. that worship
Navratri is a river that flows between the banks of power and devotion. Its relevance is self-evident in Hindu religious texts. Navratri comes twice a year. One is Sharadiya Navratri which falls in the Shukla Paksha of Ashwin month and the other which falls in the Shukla Paksha of Chaitra month. At present we are talking about Navratri of Shukla Paksha of Chaitra month. According to Indian calendar, Pratipada of Shukla Paksha of Chaitra month means from Ekam to Navami, Chaitra Navratri is only the period of worship of Shakti, there can be decay or increase of Vidhi, sometimes it becomes joint tithi. And as the date increases, there are ten Navratri.
Navratri is the festival of cleanliness of conscience.
Fasting during Navratri is the “soap” that keeps the digestive system clean. This is the ladder of cleanliness of Sokaran. It becomes more sacred when the Mother is worshiped during Navratri in a pure, pure and dedicated manner. Matrashakti ritual is performed while fasting and worshiping the Mother Goddess. In Markandeya Purana, under the story of Savarnik Manvantar, it is said in the 71st verse of the 5th chapter of Kshi Durgasaptadashi of Devidun Samvad in Devi Mahatmya that “Ya Sarvabhuteshu is just a form of organization.
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love is supreme
The devotion towards the mother is underlined at the root of the feeling of devotion in the form of Navadurga's sole power. It can be easily understood with the example of a family, which has two poles: father and mother. Family: Generally, father's books contain 'chapters of discipline', while mother's chapters contain 'letters of intimacy' written with the ink of affection. The meaning is that the mother immediately gets tired after hearing the call of her child. Therefore worshiping the Goddess as a mother is more fruitful.
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understand also in current context
The relevance of Navratri in the present context is that the mother has always protected her children, hence the children should always give proper respect and love to the mother, sister, daughter-in-law and others in the family. Only women's power should be underestimated. From this, women power can be estimated that today women, i.e. mere power, have proved their dominance over knowledge, science and earth and sky. These poetic lines are very relevant in the context of the glory of mere power: - Shakti peak of 'Shailputri', policy of 'Brahmachari', 'Chandraghanta' means love for auspicious deeds, 'Kushmanda' indicates courage to the universe, 'Skandamata' is the form. I always have affection in my heart, 'Katyaayani' Kripanidhi, 'Kalratri' upliftment, 'Maha Gauri' Suyash Sudha, 'Siddhidatri' Maa always creates beneficial auspiciousness, Maa means loving mother, mother does welfare of all.
worship mother like this
So let us know how to complete the ritual of worshiping the nine forms of Maa Durga, the power that fulfills all desires, during Navratri. Let us know about the complete ritual of worshiping Maa Durga during Navratri.
method of worship
Sanctify the place of worship with plaster and cow urine. In the puja class, it is better to sit facing east in front of the idol (picture) of the goddess. Install the Kalash in the north-east corner i.e. on the right side of the idol of the goddess and also light the ghee lamp on the right side of the goddess. First, Lord Ganesha should be worshiped with Vedic mantras, that is, after the establishment of Ganapati, start worshiping the Mother Goddess.
Kalash puja
After touching the ground ‘Oo Mursi Bhoomi Rasyaditirsi’, an altar should be made and Ghat established on it. Soil for constructing the altar should be taken from a holy place. Barley or wheat should be mixed in the altar after reciting the mantra ‘O Dhanyamasi Dhinuhhi Devanpranayatvodanayatva’.
After that install the Kalrua Mantra by reciting it. After meditating on Lord Varun, pour Ganga water or water from any Shiva temple or holy water from any temple in the Kalash. After pouring water, sandalwood, kush, betel nut and panch pallav should be added and Mauli Sutra should be tied around the neck of the kalash.
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