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हमे भोजन /खाना किस तरह से करना चाहिए कि हम सब स्वस्थ रहे।जानिये भोजन के नियमो के बारे में।

 भोजन पकने के 48 मिनट के अन्दर उसका उपभोग हो जाना चाहिए । इसके बाद भोजन की पोषकता कम होने लगती है । 24 घण्टे के बाद भोजन बासी हो जाता है । 



भारत के अलावा , दुनिया के किसी भी देश को रोटी बनानी नहीं आती है । पूरी दुनियाँ में भारत में ही गरम रोटी मिलनी सम्भव है । बाकी किसी भी देश में गरम रोटी खाने को नहीं मिलती है । बासी भोजन जानवरों के खिलाने के लिए भी नहीं होता है । 

खाना खाते समय खाने को इतना चबायें कि जितने दाँत हों । ऐसा करने से मुँह की लार ज्यादा से ज्यादा पेट में जाती है और खाने को पचाने में मदद करती । 

पानी को खाओ और खाने को पियो । चबा - चबाकर खाने से मोटापा नहीं बढ़ता है । 

भारत की जलवायु में 365 दिनों में सिर्फ एक दिन ही आप बासी भोजन खा सकते हैं और वो दिन है बासोड़ा का ( एक त्यौहार ) इस दिन शरीर की वात , पित्त और कफ की स्थिति के हिसाब से बासी भोजन ही अच्छा होता है । 



इस देश के त्योहारों के पीछे भी वैज्ञानिकता है । जो वस्तु देखने में खूब चमक रही हो या चिकनी हो , उसे कभी न खायें , जैसे : - साग , सब्जी , फल - फूल आदि । ऐसी वस्तुएं लाने के बाद सेंधा नमक डालकर उबालें और उबलें हुए पानी में ( थोड़ा ठण्डा होने के बाद ) डाल दें , जिससे उसका जहर थोड़ा कम हो जायेगा । 

बीमारियों के इलाज करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है , बीमारियों से बचना इसलिए खाना खाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है खाने को पचाना । भोजन पचेगा तो रस बनेगा और उसी रस में से मांस , मज्जा , रक्त , मल - मूत्र , वीर्य , मेध , अस्थियाँ बनेंगी जिनका शरीर को काम होता है । भोजन के अन्त में या बीच में पानी पीना विष पीने के बराबर है । भोजन पचने की क्रिया में भोजन स्स में बदलेगा ( लुग्दि बनने के बाद ) ।


भोजन के मुँह में आते ही जठर स्थान पर अग्नि प्रदीप्त होती है । जो भोजन का पाचन करती है और पानी पीते ही अग्नि बुझ जाती है और भोजन के पचने की क्रिया रूक जाती है । जैसे चुल्हे की अग्नि पर पानी पड़ते ही अग्नि बुझ जाती और भोजन पकना बन्द हो जाता है , उसी प्रकार जठर स्थान की भी पाचन की क्रिया रूक जाती है और इसके बाद भोजन पचेगा नहीं वो सड़ेगा । 

भोजन सड़ेगा तो सबसे पहले वायु बनेगी और इसी वायु से 103 रोग पैदा होंगे । जैसे - एसिडिटी , हाइपर एसिडिटी , अल्सर , पेप्टिक अल्सर , बवासीर , मूढव्याध , भगन्दर , इसी प्रकार सबसे अन्त का रोग है - कैंसर । भोजन के सड़ने से ही खराब वाला कोलेस्ट्राल बनेगा । 

शरीर में 2 तरह के कोलेस्ट्राल होते हैं एक अच्छा वाला ( HDL ) और खराब वाला ( LDL और VLDL ) कोलेस्ट्राल बढ़ने से हृदयघात , घुटने का जड़ हो जाना , संधियों का कड़क हो जाना आदि । 

सुबह - सुबह प्रकृति के द्वारा पकाये हुए फल खाना सबसे अच्छा है अर्थात फल सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पहले ही खायें । भोजन का समय निश्चित करें अर्थात जठराग्नि तीव्र हो तभी भोजन करें । 

हमेशा कुछ न कुछ खाने की अथवा थोड़ा - थोड़ा बार - बार खाने की आदत न डालें । सूर्य के उदय से ढाई घण्टे तक जठराग्नि सबसे तीव्र होती है अर्थात इस समय भारी से भारी भोजन करें अर्थात 9:30 बजे के अन्दर ही लंच करें अथवा गरिष्ठ से गरिष्ठ भोजन करें । नाश्ता छोड़ें और सीधे लंच करें । 

सूर्य उदय से ढाई घण्टे तक जठराग्नि के काम करने का सबसे अच्छा समय है अर्थात सुबह 7:00 बजे से 9:30 बजे तक । 

हृदय के काम करने का सबसे अच्छा समय है , ब्रह्ममुहुर्त से ढाई घण्टा पहले अर्थात 2 : 00-2 : 15 बजे से लेकर सुबह 4 : 00-4 : 30 बजे तक हृदय सबसे ज्यादा सक्रिय होता है और सबसे ज्यादा हृदयघात इसी समय में आते हैं । 


दोपहर का भोजन सुबह के भोजन का आधा होना चाहिए । शाम का भोजन दोपहर के भोजन का आधा होना चाहिए अर्थात यदि आप सुबह 6 रोटी खाते हैं तो दोपहर को चार रोटी ले लीजिए और शाम को दो रोटी ले लीजिए ।

दोपहर में चना और गुड या मुँगफली और गुड या चिक्की भी खा सकते हैं । ज्यादा चिक्की खाने से नाक में से खून आ सकता है । चिक्की ज्यादा होने पर थोड़ा सोठ चाट लेने से चिक्की की तासीर तुरन्त बदल जाती है । 
भोजन में मन की संतुष्टि पेट की संतुष्टि से ज्यादा बड़ी है । मन की संतुष्टि नहीं होने वाले भोजन करते रहने से 10-12 साल बाद मानसिक रोग पैदा होने लगते हैं । अवसाद जैसी बीमारियां शरीर में प्रवेश करने लगती हैं । ऐसी स्थिति में कुल 27 तरह की बीमारियां हो सकती हैं । 

मनुष्य को छोड़कर जीव - जगत का हर प्राणी इस सूत्र का पालन करता है । दोपहर के बाद जठराग्नि की तीव्रता कम होने लगती है । लेकिन सूर्यास्त के समय जठराग्नि की तीव्रता बढ़ जाती है । जैसे बुझते हुए दीपक की रोशनी उसके बुझते समय बढ़ जाती है । अतः रात्रि भोजन कभी न करें । सूरज डूबने से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना चाहिए । सूर्य डूबने के बाद सिर्फ दूध पी सकते हैं जिसमें देशी गाय का दूध सबसे अच्छा है । 

खाना हमेशा जमीन पर बैठकर ही खायें यानी सुखासन में खाना खायें । सुखासन में बैठकर खाते समय जांघों के नीचे की तरफ रक्त बहाव रूक जाता है जिसके कारण सारा रक्त पेट में ही रहता है जो कि खाना पचाने में काफी मदद करता है । इस स्थिति में जठराग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती । गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से नाभि चार्ज होती रहती है । 
कुर्सी पर बैठने से इसकी तीव्रता घट जाती है और खड़े हो जाने से इसकी तीव्रता बिल्कुल कम हो जाती है । 

शरीर के अन्दर कई चक्र होते हैं जिनका असर जठराग्नि पर पड़ता है । खाना खाते समय खाना जमीन से थोड़ी ऊँचाई पर रखा होना चाहिए । सुखासन के अतिरिक्त गाय का दूध निकालने की जो मुद्रा होती है उसमें भी खाना खा सकते हैं । ये मुद्रा शारीरिक श्रम अधिक करने वालों के लिए है अर्थात किसान अथवा मजदूरों के लिए है । सुखासन में बैठकर खाना खाने से पेट बाहर नहीं निकलता है । 


लेकिन डाइनिंग टेबल पर खाना खाने से पेट बाहर निकलता है । डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर सुखासन में बैठकर खाना खायें । 

हर एक ज्वाइन्ट्स में ल्यूब्रिकेन्टस के लिए स्लोवियल फ्लू होता है । शरीर जितना अधिक पृथ्वी के नजदीक होगा अथवा गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में होगा उतना ही अधि क शरीर को लाभ होगा ।
सुबह या दोपहर के खाने के तुरंत बाद कम से कम 20 मिनट की विश्रान्ति लें । विश्रान्ति वामकुक्षि अवस्था में लेटकर लें अर्थात भगवान विष्णु की शेषनाग पर लेटने की मुद्रा में लेटें । 

हमारे शरीर में तीन नाड़ियां हैं । सूर्य नाड़ी , चन्द्र नाड़ी और मध्य नाड़ी । सूर्य नाड़ी ही हमारे भोजन को पचाने में मदद करती है । ( वाम कुक्षी ) बायीं तरफ करवट लेकर लेटते ही सूर्य नाड़ी शुरू हो जाती है । 


स्वस्थ व्यक्ति की अवस्था में खाना खाते ही सूर्य नाड़ी सक्रिय हो जाती है । विश्रान्ति के दौरान नींद आने पर नींद को रोके नहीं । दोपहर का विश्राम 18 वर्ष से 60 वर्ष तक के लोगों के लिए 40 मिनट से 1 घण्टे तक होना चाहिए , 1 साल से 18 वर्ष और 60 वर्ष से अधिक के लोगों के लिए 1 घण्टे से डेढ़ घण्टे विश्राम करना चाहिए । 

खाना पचाते समय शरीर के सभी अंगों से खून पेट की तरफ आता है जिसके कारण शरीर में आलस्य बढ़ता है । इसलिए मस्तिष्क आराम करना चाहता है । जिसके कारण नींद आती है । दोपहर के खाने के बाद नींद लेने के महत्व पर पूरे विश्व में शोध हो रहे हैं जिसके परिणाम के तहत बहुत सारी कम्पनियां अपने कर्मचारियों को दोपहर के भोजन के बाद नींद लेने का मौका देती हैं । जिन कर्मचारियों को नींद लेने की छूट दी गयी है , उनके काम करने की क्षमता तीन गुना बढ़ गयी है । 

खाना खाने के बाद शरीर का रक्त दबाव बढ़ जाता है । इसलिए भी सुबह या दोपहर के खाने के बाद 20-40 मिनट का आराम करना ही चाहिए । 

रक्त के दबाव का मतलब मस्तिष्क में बहुत ज्यादा रक्त है । अतः खाने को पचाने के लिए रक्त का पेट में होना आवश्यक है । 

खाने के बाद काम करते रहने से बी ० पी ० और अधिक बढ़ता है । कोई भी कार्य करते समय बी 0 पी 0 बढ़ता है और कोई कार्य नहीं करने से बी 0 पी 0 घटता है । अतः पूरे शरीर में खून के दबाव का घटना - बढ़ना लगा रहता है जो कि प्राकृतिक रूप से आवश्यक है । अतः बी ० पी ० के बढ़ने के तुरन्त बाद घटना भी चाहिए । इसलिए शारीरिक क्रियायें इसे संतुलित करने के लिए होनी चाहिए । 

सूर्य के दबाव में भी रक्तचाप बढ़ता है । शाम के भोजन के बाद कम से कम दो घण्टे तक कभी भी तुरन्त विश्रान्ति नहीं लेना चाहिए । तुरन्त सोने से हृदय घात , मधुमेह जैसी बीमारियां प्रवेश करने लगेंगी । 


सन्ध्या भोजन के बाद चन्द्रमा का समय आता है , जो प्रकृति  से शीतल होता है जिसके कारण रक्त दबाव रात्रि में कम होता है । अतः रात्रि के भोजन के कम से कम दो घण्टे बाद ही आराम करें । इन दो घण्टों में कुछ काम करें या कम से कम 1000 कदम टहलें । शाम का टहलना सुबह के टहलने से ज्यादा लाभकारी होता है । 

खाना खाने के बाद कम से कम 10 मिनट बज्रासन पर जरूर बैठें । यदि किसी कारणवश सुबह और शाम का खाना खाने के बाद के नियमों का पालन नहीं कर पाते हैं तो ऐसा करना बहुत ही लाभदायक होगा । 

खाना खाते समय चित्त और मन शान्त रहने चाहिए अन्यथा पेट में पाचक रसों के बनने में कमी आयेगी और इस प्रकार की कमी से खाना पूरी तरह नहीं पचेगा । खाना खाने से पहले या खाना खाते समय भजन , मंत्र या भगवान की किसी प्रार्थना के द्वारा चित्त और मन दोनों शान्त रखना चाहिए । 

बजासन में बैठकर भोजन कभी न करें । खाना खाने के बाद शहद भी दिया जा सकता है । ऐसा करना जैन दर्शन के हिसाब से सही नहीं है । भोजन हमेशा जलवायु और तासीर के अनुकूल करें । 

भोजन एक बार गर्म करके फ्रिज में रखने के बाद उसे दूबारा कभी मत गरम करें और कोशिश करें कि फ्रिज में रखी वस्तुओं के निकालने के 48 मिनट बाद ही प्रयोग में लायें । 


दिन के खाने के बाद चूने और देशी हरे पत्ते का पान अवश्य खांए । लेकिन एक कभी न खाएं । जिन्हें पथरी हो या रही हो वो चूना कभी न खाएं । शरीर से बहुत कम और बहुत अधिक तापमान की वस्तु कभी न खाएं । जैसे आइसक्रीम आदि । सभी क्षारीय चीजें , सूरज डूबने के बाद खाँए । जितनी अम्लीय चीजें हैं , सूरज डूबने के पहले खांए जैसे - हल्के खट्टेपन वाली वस्तुएं , रस वाली वस्तुएं । 
उपवास या डायटिंग करके कभी भी वजन कम न करें क्योंकि इससे शरीर में प्रोटीन बहुत कम हो जाती है । शरीर में जिसके कारण एक तरफ वजन कम होगा और दूसरी तरफ जोड़ो का दर्द बढ़ता चला जायेगा । क्षमता से थोड़ा कम खा सकते हैं लेकिन ज्यादा कम न खायें ।

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