हॉकी के जादूगर(मेजर ध्यानचंद):-
हॉकी के महान जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्म दिवस 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
1 इनका जन्म 29 अगस्त 1905 को यूपी के इलाहाबाद में हुआ था।
2 इनकी आत्म कथा का नाम ""गोल "" है।
3 मेजर ध्यानचंद के नाम पर भारत में हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता है।
4 हॉकी के खेल में अच्छे प्रदर्शन के लिए मेजर ध्यानचंद पुरस्कार दिया जाता है।
5 1956 में इन्हें पदमभूषण दिया गया ।
6 इन्होंने भारत को तीन बार ओलिंपिक में स्वर्ण पदक दिलवाया।
7 ओलंपिक में भारत ने 8 स्वर्ण जीते है।
1st 1928 = एमस्तद्रम् (हॉलैंड या नीदरलैंड )
2end 1932= लॉस एंजिल्स (अमेरिका)
इस ओलंपिक में भारत ने अमेरिका को 24- 1 से बुरी तरह पराजित किया ध्यानचंद ने अकेले इस ओलंपिक में भारत की ओर से 101 गोल कर रिकॉर्ड बनाया था।
3rd 1936= बर्लिन ( जर्मनी)
4th 1948= लंदन ( इंग्लैंड)
5th 1952= हेलेंसिकी ( फ़िनलैंड)
6th 1956= मेलबोर्न (ऑस्ट्रेलिया )
7th 1964= टोक्यो ( जापान)
8th 1980= मास्को ( रूस )
8 विश्व कप हॉकी में भारत ने अभी तक एक बार 1975 में क्वालालम्पुर ( मलेशिया ) में पाकिस्तान को पराजित कर जीता था ।
9 सबसे ज्यादा बार विश्व कप हॉकी पाकिस्तान ने 4 बार जीता है ।
10 जर्मन तानाशाह हिटलर नेमेजर ध्यानचंद की जादूगरी एवम् कलात्मकता रूपी खेल से प्रभावित होकर इन्हें जर्मनी की ओर से खेलने का आग्रह किया एवम् अपनी सेना में सर्वोच्च पद देने का प्रस्ताव दिया परंतु देशभक्ति एवम् वतनपरस्ती का अद्भुत जज्बा एवम् जुनून दिखाते हुए मेजर ध्यानचंद ने एडोल्फ हिटलर के इस प्रस्ताव को विनम्रता पूर्वक ठुकरा दिया।
11 मेजर ध्यानचंद को 2013 में देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की मांग की गयी थी जब मास्टर ब्लास्टर सचिन को केंद्र की कांग्रेस सरकार ने खेल के क्षेत्र में पहली बार भारत रत्न सचिन को दिया गया था ।।
12मेजर ध्यानचंद की कलात्मकता रूपी अद्भुत खेल एवम् जादू की बानगी इस बात से पता चलती है कि कई बार मैच के दौरान इनकी हॉकी स्टिक की जाँच की जाती थी कि इसमें चुम्बक लगा हुआ है।क्योंकि इनके पास गेंद आने के बाद गेंद सीधे विपक्षी टीम के गोलपोस्ट में जाती थी।
13 हिटलर ने बर्लिन ओलम्पिक में ध्यानचंद के हॉकी स्टिक को तोड़ कर चुम्बक की जाँच करवायी थी ।परंतु हमेशा मेजर ध्यानचंद कसौटी पर सही उतरे ।
14 प्रत्येक वर्ष 29 अगस्त को माननीय राष्ट्रपति द्वारा देश का सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार अर्जुन पुरस्कार द्रोणाचार्य पुरस्कार मेजर ध्यानचंद पुरस्कार उत्कृष्ट खेल प्रतिभागियों, प्रशिक्षकों को प्रदान किया जाता है 2019 का देश का सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रतन पुरस्कार कुश्ती के क्षेत्र में बजरंग पूनिया और एथलेटिक्स में दीपा मलिक को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया था ।।
राजस्थान(मेवाड़ ) के भामाशाह :-
मेवाड़ के इतिहास की जब भी बात उठती है तो दानवीर भामाशाह का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है। भामाशाह स्वामिभक्त एवं दानवीर भामाशाह होने के साथ-साथ जैनधर्म के परम श्रद्धालु श्रावक थे। हल्दी घाटी के युद्ध में पराजित महाराणा प्रताप के लिए उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति में इतना धन दान दिया था कि जिससे २५००० सैनिकों का बारह वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। प्राप्त सहयोग से महाराणा प्रताप में नया उत्साह उत्पन्न हुआ और उन्होंने पुन: सैन्य शक्ति संगठित कर मुगल शासकों को पराजित कर फिर से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया।
दानवीर भामाशाह की उपलब्धि कहें या राजाओं द्वारा उन्हें दिए गए सम्मान, उनकी समाधि स्थल का निर्माण उदयपुर राजस्थान में राजाओं की समाधि स्थल के मध्य किया गया है। इसके अलावा महाविभूति भामाशाह के सम्मान में ३१/१२/२००० को ३ रुपये का डाक टिकट भी जारी किया गया था।
दानवीर भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्त्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ था। मेवाड़ के इस वृद्ध मंत्री ने अपने जीवन में काफ़ी सम्पत्ति अर्जित की थी। मातृभूमि की रक्षा के लिए महारणा प्रताप का सर्वस्व हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए भामाशाह ने अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा उन्हें अर्पित कर दी। वह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति के साथ प्रताप की सेवा में आ उपस्थित हुए और उनसे मेवाड़ के उद्धार की याचना की।
दानवीर भामाशाह ने महाराणा प्रताप से कहा- मेवाड़ी धरती मुगलों से आतंकित है, महाराणा इसका उद्धार कीजिए।
मैं युद्ध लड़ने नहीं जा सकता, लेकिन मेरे पास जो धन का वो मैं मातृभूमि के लिए न्योछावर तो कर ही सकता हूँ। जब महाराणा प्रताप ने इस धन को यह कहकर लेने से मना कर दिया कि वो भामाशाह एवं उनके पूर्वजों की संपत्ति है, इसे वो नहीं ले सकते।
तब दानवीर भामाशाह ने महाराणा प्रताप से कहा - महाराज ये संपत्ति भी आपके पूर्वजों की देन है, इसे ग्रहण कर लीजिए और मेवाड़ की रक्षा कीजिये। मेवाड़ स्वतंत्र रहेगा तो मैं धन फिरसे कमा लूंगा, लेकिन परतंत्रता में ये धन मेरे लिए मिट्टी के ढेले के समान होगा।माना जाता है कि यह सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उससे वर्षों तक 25,000 सैनिकों का खर्चा पूरा किया जा सकता था।
उधर जब क्रूर शासक अकबर को इस घटना के बारे में पता चला तो वह भड़क गया। वह सोच रहा था कि सेना के अभाव में राणा प्रताप उसके सामने झुक जायेंगे।
पर दानवीर भामाशाह के इस दान से राणा को नयी शक्ति मिल गयी। अकबर ने क्रोधित होकर भामाशाह को पकड़ लाने को कहा।
अकबर को उसके कई साथियों ने समझाया कि एक व्यापारी पर हमला करना उसे शोभा नहीं देता। इस पर उसने भामाशाह को संदेश भेजा कि वह उसके दरबार में मनचाहा पद ले ले और राणा प्रताप को छोड़ दे। परन्तु दानवीर भामाशाह ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया।इतना ही नहीं उन्होंने अकबर से युद्ध की तैयारी भी कर ली।
लेकिन यह समाचार मिलने पर अकबर ने अपना विचार बदल दिया।
मंत्री भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। भामाशाह के सहयोग ने ही महाराणा प्रताप को जहाँ संघर्ष की दिशा दी, वहीं मेवाड़ को भी आत्मसम्मान दिया।
आज भी दानवीर भामाशाह की दानशीलता के प्रसंग लोकगीतों एवं कहानियों में मिलते हैं, जिसे मेवाड़ के आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते हैं।
"जब जब राणा का भाला चर्चा में आएगा तब-तब आएगा भामा का दान,"
"दोनों ही थे एक जैसे दयालु एक जैसे थे महान।।"
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